कैसे कंपनियां हमें धोखा देकर ज्यादा पैसे वसूल कर रही हैं? जानिए 10 बड़े तरीके!
कैसे बड़ी कंपनियां हमसे पैसे लूटती है:
दोस्तों आज के समय में हम सभी बड़े ब्रांड्स और कंपनियों पर भरोसा करते हैं। पर क्या आपको पता है कि ये कंपनियां हमें अनजाने में लूट रही हैं और इस बात की आपको भनक तक नहीं है? बढ़ती महंगाई के साथ कंपनियों ने नए-नए तरीके निकाल लिए हैं जिससे वो बिना हमें बताए ज्यादा पैसे वसूल कर रही हैं।
आइए जानते हैं वो 10 बड़े तरीके, जिनसे कंपनियां हमारे साथ गेम कर रही हैं और कैसे हम इस धोखे से बच सकते हैं।
1. नियोजित मूल्यह्रास (Planned Obsolescence) – जानबूझकर कर ऐसी चीजों को बनाना जिससे चीजे जल्दी खराब हो
कैसे काम करता है?
कंपनियां जानबूझकर ऐसे प्रोडक्ट्स बनाती हैं जो कुछ सालों में खराब हो जाएं, ताकि हमें बार-बार नए प्रोडक्ट्स खरीदने पड़ें।

उदाहरण के तोर पर:
- स्मार्टफोन बैटरी को नॉन-रिप्लेसेबल बना दिया जाता है ताकि 3-4 साल बाद नया फोन लेना पड़े।
- एलईडी बल्ब्स पहले 15-20 साल चलते थे, लेकिन अब 5-7 साल में खराब हो जाते हैं।
- फ्रिज और वाशिंग मशीन भी पहले 15 साल चलते थे, अब 5-7 साल में ही बदलने पड़ते हैं।
समाधान:
हमेशा उन ब्रांड्स को चुनें जो राइट टू रिपेयर (Right to Repair) का समर्थन करते हैं। रिपेयर ऑप्शन को तलाशें, आपके आस पास या आपके शहर में उस कंपनी का सर्विस सेंटर होना चाहिए और बार-बार नया प्रोडक्ट खरीदने से बचें।
2. सिकुड़न मुद्रास्फीति (Shrinkflation) – सामान का साइज घटाकर कीमत वही रखना
कैसे काम करता है?
कंपनियां प्रोडक्ट की कीमत वही रखती हैं लेकिन साइज छोटा कर देती हैं। इससे हमें लगता है कि कीमत नहीं बढ़ी, लेकिन असल में हम कम प्रोडक्ट खरीद रहे होते हैं।

उदाहरण:
- मैगी का पैकेट पहले 80g का आता था, अब 55g का हो गया है।
- ₹10 वाली कोल्ड ड्रिंक बॉटल पहले 250ml की थी, अब 200ml की हो गई है।
- बिस्किट के पैकेट में पहले 12 बिस्किट्स आते थे, अब 10 ही आते हैं या अब इससे कम ही होंगे।
समाधान:
पैकेजिंग पर साइज चेक करें और पिछले पैक से तुलना करें। ज्यादा सस्ते और बड़े पैक खरीदें, जो ज्यादा वैल्यू देते हों।
3. मूल्य वृद्धि (Surge Pricing) – बैटरी कम होते ही ज्यादा कीमत दिखाना!
कैसे काम करता है?
जब आपके फोन की बैटरी 5 से 15 प्रतिशत दिखाई देती है, तो कुछ एप्स (जैसे कैब बुकिंग एप्स) कीमत बढ़ा देती हैं। आपको लगता है कि यह सर्ज प्राइसिंग है, लेकिन असल में यह एक बिल्कुल अलग रणनीति है। क्योकि रात में या जल्दी है घर या कही और जाने की तो आपके पास कोई आप्शन नहीं होता है क्योकि आपके मोबाइल की बेटरी खत्म होने वाली है और इसी का फायदा यह कंपनिया उठाती है और आपसे ज्यादा चार्ज करती है

उदाहरण:
Uber की स्टडी में पाया गया कि अगर फोन की बैटरी 10% से कम हो, तो ऐप ज्यादा किराया दिखाता है। स्मार्टफोन के सॉफ़्टवेयर अपडेट से फोन स्लो करने की रिपोर्ट्स भी आई हैं।
समाधान:
बैटरी कम होने पर किसी भी बुकिंग से पहले प्राइस की तुलना करें। दूसरे फोन या लैपटॉप से चेक करें कि वही सर्विस कितनी कीमत पर मिल रही है।
4. ब्रांडेड प्रोडक्ट्स का गेम – दिखने में महंगा, लेकिन वैल्यू कम!
कैसे काम करता है?
कंपनियां महंगे ब्रांड्स बनाकर उन्हें ज्यादा कीमत पर बेचती हैं, जबकि असल में वो सस्ते प्रोडक्ट्स के बराबर ही होते है कुछ ज्यादा अलग नहीं होते।
उदाहरण:
iPhone 14 और iPhone 13 में कोई खास बदलाव नहीं था, लेकिन कीमत ₹20,000 ज्यादा थी। Oppo, Vivo, Realme, और OnePlus एक ही कंपनी (BBK Electronics) के ब्रांड्स हैं, लेकिन अलग-अलग नाम से बेचे जाते हैं।
समाधान:
- खरीदारी से पहले Specifications की तुलना करें।
- अनावश्यक रूप से ब्रांडेड प्रोडक्ट्स पर ज्यादा खर्च करने से बचें।
5. फर्जी offers और Discounts – पहले कीमत बढ़ाओ, फिर ऑफर दो!
कैसे काम करता है?
ऑनलाइन शॉपिंग में कंपनियां पहले कीमत बढ़ा देती हैं और फिर डिस्काउंट दिखाकर उसे ‘सस्ता’ दिखाती हैं। जिससे आपको लगे की ये तो बहुत सस्ता दे रहे है बल्कि कंपनी वाले कभी घाटा नहीं खाते
उदाहरण:
Amazon और Flipkart पर फेस्टिवल सेल में कई प्रोडक्ट्स पहले महंगे कर दिए जाते हैं, फिर डिस्काउंट दिखाया जाता है।
समाधान:
- Price History Tracker जैसे टूल्स का इस्तेमाल करें।
- फ्लैश सेल के चक्कर में न आएं, पहले अच्छी तरह रिसर्च करें।
6. महंगे रिप्लेसमेंट पार्ट्स – सस्ता प्रोडक्ट, महंगे पार्ट्स!
कैसे काम करता है?
कंपनियां सस्ते प्रोडक्ट बेचकर महंगे रिप्लेसमेंट पार्ट्स से पैसे कमाती हैं।

उदाहरण:
- इंकजेट प्रिंटर सस्ते मिलते हैं, लेकिन उनकी इंक कार्ट्रिज बहुत महंगी होती हैं।
- वॉटर प्यूरिफायर कंपनियां AMC (Annual Maintenance Contract) बेचकर ज्यादा पैसे कमाती हैं।
समाधान:
रिसर्च करें और देखें कि रिप्लेसमेंट पार्ट्स महंगे तो नहीं हैं। जो प्रोडक्ट्स लंबे समय तक चलें, वही खरीदें।
7. गलत मार्केटिंग – झूठे दावे और मिसलीडिंग ऐड्स!
कैसे काम करता है?
कंपनियां ऐसे दावे करती हैं, जो सुनने में तो आपको बहुत अच्छे लगते हैं लेकिन सच्चाई से बहुत दूर दूर का नाता होता हैं।

उदाहरण:
- 99.9% बैक्टीरिया मारने वाला साबुन – असल में वैज्ञानिक रूप से ऐसा कोई साबुन नहीं है।
- डेंटिस्ट द्वारा रिकमेंडेड टूथपेस्ट – डॉक्टर्स को प्रोडक्ट एंडोर्स करने की अनुमति नहीं होती।
समाधान:
ऐड्स को आंख मूंदकर न मानें, रिसर्च और रिव्यू जरूर पढ़ें।
जागो ग्राहक जागो
कंपनियों की मुर्ख बनाने वाली इस लुट के खिलाफ आवाज उठाओ, जितनी आवाज़ उठाओगे उतना ही प्रेशर इन कंपनियों पर पड़ेगा। सरकार को भी स्ट्रीक रेगुलेशन बना कर इन कंपनियों पर action लेना चाहिए। अगली बार आपके खिलाफ अन्याय होता है तो कंपनी को ट्वीटर ईमेल के जरिये रिपोर्ट कीजिये या सोशल मीडिया पर रील या विडियो बना कर लोगो को जागरूक करने का काम कीजिये।
- अब आप जानते हैं कि बड़ी कंपनियां हमें कैसे लूट रही हैं!
- Shrinflation, Planned Obsolescence, Surge Pricing और फेक डिस्काउंट जैसे तरीकों से हमें ठगा जा रहा है।
- समझदारी से खरीदारी करें और इन ट्रिक्स का शिकार न बनें!
मेरा निवेदन- अगर आपको यह जानकारी पसंद आई, तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि बाकी लोग भी जागरूक बनें!
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